Wednesday 4 July 2012


हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (171 – 184)


171
कभी कभी एक बार का खाना कई बार के खानों के लिए रुकावट बन जाता है।

172
लोग उस चीज़ के दुश्मन होते हैं जिसे नहीं जानते।

173
जो व्यक्ति अनेक मशवरों का स्वागत करता है उसे सही ग़लत की पहचान हो जाती है।

174
जो व्यक्ति अल्लाह के लिए क्रोध के भाले को तेज़ करता है उसे अधर्म के सूरमाओं का वध करने की शक्ति मिल जाती है।

175
जब किसी चीज़ से डर महसूस करो तो उस में कूद पड़ो क्योंकि डर ख़ुद उस चीज़ से अधिक कष्टदायक है।

176
सरदारी का साधन हृदय की विशालता है।

177
बुरे लोगों की भर्त्सना अच्छे लोगों को उन का हक़ दे कर करो।

178
बुराई की जड़ दूसरे के सीने से इस प्रकार काटो कि उसे ख़ुद अपने सीने से निकाल फेंको।

179
ज़िद और हठधर्मी सही राय को दूर कर देती है।

180
लालच हमेशा की ग़ुलामी है।

181
किसी काम में कोताही करने का परिणाम लज्जा और दूरदर्शिता का परिणाम सुरक्षा है।

182
समझदारी की बात कहने के बजाए ख़ामोश रहने में कोई भलाई नहीं है। इसी तरह जिहालत की बात कहने में भी कोई अच्छाई नहीं है।

183
जब दो विपरीत निमंत्रण दिए जाएँ तो उन में से एक ज़रूर भटकाने वाला निमंत्रण होगा।

184
जब से मुझे हक़ (वास्तविकता) दिखाया गया है मैं ने कभी उस में शक नहीं किया।

No comments:

Post a Comment