Wednesday 20 June 2012


हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (115- 128)

115
हज़रत अली (अ.स.) से सवाल किया गया कि आप का क्या हाल है तो आप ने फ़रमायाः उस का क्या हाल होगा जिस की ज़िन्दगी उस को मौत की तरफ़ ले जा रही हो और जिस का स्वास्थ्य बीमारी से पहले की हालत हो और जिस को उस के शरण स्थल से ही पकड़ लिया जाए गा।

116
कितने ही लोग ऐसे हैं जिन को उपहार दे कर पकड़ में ले लिया जाता है। कितने ही लोग ऐसे हैं जो अल्लाह की पर्दापोशी से धोका खाए हुए हैं और अपने बारे में अच्छी बातें सुन कर धोका खा जाते हैं और अल्लाह ने मोहलत से बढ़ कर परीक्षा का कोई ज़रिया क़रार नहीं दिया।

117
मेरे बारे में दो तरह के लोग तबाह व बरबाद होंगेः एक वो चाहने वाला जो हद से आगे बढ़ जाए और एक वो दुश्मन जो मुझ से अदावत रखता हो।

118
अवसर को हाथ से जाने देना दुख व क्षोभ का कारण होता है।

119
दुनिया की मिसाल साँप की सी है जो छूने में बहुत नर्म मालूम होता है मगर उस के अन्दर घातक विष भरा होता है। धोका खाया हुवा जाहिल इंसान उस की तरफ़ आकर्षित हो जाता है और बुद्धिमान व समझदार उस से बच कर रहता है।

120
हज़रत अली (अ.स.) से क़ुरैश के बारे में पूछा गया तो आपने फ़रमाया, बनी मख़ज़ूम का क़बीला क़ुरैश का महकता हुवा फूल हैं। उन के मर्दों से बात चीत और उन की औरतों से शादी पसंदीदा है। और बनी अब्दे शम्स बहुत दूर तक सोचने वाले और अपने पीछे की बातों की रोक थाम करने वाले हैं। लेकिन हम बनी हाशिम अपने हाथ की दौलत के लुटाने और मौत के मैदान में जान देने वाले होते हैं। वो लोग गिनती में अधिक, धोके बाज़ और कुरूप होते हैं और हम अच्छी बातें करने वाले, दूसरों के शुभचिन्तक और रौशन चेहरों वाले होते हैं।

121
उन दो प्रकार के कर्मों में कितना अन्तर है, एक वो कि जिस का स्वाद मिट जाए किन्तु कष्ट बाक़ी रहे और एक वो कि जिस का कष्ट ख़त्म हो जाए किन्तु पुण्य व पुरस्कार बाक़ी रहे।

122
हज़रत अली (अ.स.) एक जनाज़े के पीछे जा रहे थे कि आप ने एक व्यक्ति के हँसने की आवाज़ सुनी जिस पर आप ने फ़रमायाः
ऐसा लगता है जैसे दुनिया में मौत हमारे अलावा केवल दूसरों के लिए लिखी गई है और जैसे यह मौत केवल दूसरों को ही आए गी। और ऐसा लगता है कि हम जिन मरने वालों को देखते हैं वो यात्री हैं जो जल्दी ही हमारी तरफ़ पलट कर आ जाएँगे (जब कि वास्तविकता यह है कि) इधर हम उन को क़ब्रों में उतारते हैं और इधर उन का तर्का खाने लगते हैं जैसे हम हमेशा रहने वाले हैं। फिर यह कि हम ने हर उपदेश देने वाले को भुला दिया है और आफ़त का निशाना बन गए हैं।

123
वो व्यक्ति ख़ुशक़िसमत है जिस ने स्वयं को छोटा व ज़लील समझा, जिस की कमाई साफ़ सुथरी, जिस की नियत नेक और जिस की आदत अच्छी रही। जिसने अपने बचे हुए माल को अल्लाह की राह में ख़र्च किया, जिस ने अपनी ज़बान को ज़्यादा बात करने से रोके रखा, जिस ने अपने आप को लोगों को कष्ट देने से बचाए रखा, सुन्नत उस को बुरी न लगी और वो बिदअत (नई बात) के साथ जुड़ा नहीं।
सैय्यद रज़ी कहते हैं कि यह कलाम और इस से पहले वाला कलाम हज़रत मौहम्मद (स.) का है।

124
औरत का स्वाभिमान करना कुफ़्र और मर्द का स्वाभिमान करना ईमान है।

125
मैं इसलाम की ऐसी परिभाषा बयान करता हूँ कि जैसी परिभाषा मुझ से पहले किसी ने नहीं बयान की। इसलाम का अर्थ अपने आप को समर्पित कर देना है और समर्पित करने का अर्थ विश्वास है और विश्वास का अर्थ पुष्टि करना है और पुष्टि करने का अर्थ स्वीकार करना है और स्वीकार करने का अर्थ कर्तव्य का पालन करना है और कर्तव्य का पालन करना नेक काम अंजाम देना है।

126
मुझे आश्चर्य होता है कंजूस पर कि जिस निर्धनता से वह भागना चाहता है वही उस की तरफ़ तेज़ी से बढ़ती है और वो ख़ुशहाली जिस का वह इच्छुक होता है वही उस के हाथ से निकल जाती है। वह इस दुनिया में फ़क़ीरों जैसी ज़िन्दगी गुज़ारता है और उसे उस दुनिया में अमीरों जैसा हिसाब देना पड़ता है। और मुझे अहंकारी पर आश्चर्य होता है क्यूँकि कल वह नुतफ़ा (वीर्य) था और कल मुरदार हो जाएगा। और मुझे उस इंसान पर आश्चर्य होता है कि जो अल्लाह के होने में शक करता है जबकि वह उस के बनाए हुए संसार को देखता है। और मुझे उस व्यक्ति पर आश्चर्य होता है जो मृत्यु को भूले हुए है जबकि वह मरने वालों को देखता है। और मुझे उस पर आश्चर्य होता है कि जो पहली पैदाइश को देखता है मगर दोबारा उठाए जाने से इंकार करता है। और मुझे आश्चर्य होता है उस पर जो इस नश्वर सराय को आबाद करता है और अपने उस घर को भूल जाता है जहाँ उस को हमेशा रहना है।

127
जो कर्म में कोताही करता है वह दुख में घिरा रहता है और जिस के माल व जान में अल्लाह का कुछ हिस्सा न हो, अल्लाह को ऐसे व्यक्ति की कोई ज़रूरत नहीं है।

128
शुरू सर्दी में सर्दी से एहतियात करो और आख़िर में उस का स्वागत करो क्यूँकि सर्दी शरीरों के साथ वही करती है जो वृक्षों के साथ करती है। सर्दी शुरू में वृक्षों को झुलसा देती है और आख़िर में उन को हरा भरा कर देती है।


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