हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (45 - 70)
45
अगर मैं मोमिन की नाक पर तलवारें मारूँ कि वह मुझ को दुश्मन रखे तो नहीं रखेगा
और अगर मुनाफ़िक़ को पूरी दुनिया भी बख़्श दूँ कि वह मुझे दोस्त रखे तो नहीं
रखेगा। इस लिए कि यह वह फ़ैसला है जो पैग़म्बरे उम्मी लक़ब, हज़रत मौहम्मद मुस्तफ़ा
(सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम), की ज़बान से हो चुका है। आप (सल्लल्लाहो अलैहे
व आलेही व सल्लम) ने फ़रमाया था, “ऐ अली, कोई मोमिन तुम से दुश्मनी नहीं रखेगा और कोई मुनाफ़िक़ तुम को दोस्त
नहीं रखेगा”।
46
वो पाप जिस का तुम्हें दुख हो उस नेकी से कहीं अच्छा है जो तुम को घमण्डी
बना दे।
47
किसी व्यक्ति में जितनी हिम्मत होगी उतनी ही उस की अहमियत हो गी। जितनी उस में
मुरव्वत और मर्दानगी होगी उतनी ही उस में सच बोलने की ताक़त होगी। जितना वह
बदनामी से डरेगा उतनी ही उस में बहादुरी हो गी और उस का दामन जितना पाक होगा उतनी
ही उस में ग़ैरत हो गी।
48
सफ़लता दूरदर्शिता पर निर्भर है, दूरदर्शिता सोच विचार पर निर्भर है और सोच
विचार भेदों को छुपा कर रखने पर निर्भर है।
49
भूखे शरीफ़ और पेट भरे कमीने के हमले से डरते रहो।
50
लोगों के दिल जानवरों की तरह हैं जो उन को सधाए गा वो उस की तरफ़ झुक जाएँ गे।
51
जब तक तुम्हारे नसीब तुम्हारे साथ हैं तुम्हारे ऐब छुपे हुए हैं।
52
माफ़ करना सब से ज़्यादा उस को शोभा देता है जो दण्ड देने की शक्ति रखता हो।
53
सख़ावत वो है जो बिना माँगे दिया जाए क्यूँकि जब कोई चीज़ माँगने पर दी जाती
है तो वो या तो शर्म से बचने के लिए दी जाती है या बदनामी से।
54
बुद्घि से बढ़ कर कोई दौलत नहीं है। जिहालत से बढ़कर कोई ग़रीबी नहीं है।
सदव्यवहार से बढ़ कर कोई धरोहर नहीं है और परामर्श से बढ़ कर कोई मददगार नहीं है।
55
सब्र (धैर्य) दो तरह का होता हैः नापसंद बातों पर सब्र और पसंदीदा चीज़ों से
सब्र।
56
अगर पैसा हो तो परदेस भी देस है और अगर पैसा न हो तो देस भी परदेस है।
57
संतोष वो धन है जो कभी समाप्त नहीं होता।
58
माल वासनाओं का स्रोत है।
59
जो तुम को बुरा काम करने से रोकने के लिए डराए वो तुम को शुभ समाचार सुनाने
वाला है।
60
ज़बान एक ऐसा जानवर है कि अगर उस को खुला छोड़ दिया जाए तो फाड़ खाए।
61
औरत (स्त्री) एक ऐसा बिच्छू है कि जिस के लिपटने में भी मज़ा है।
62
जब तुम को सलाम किया जाए तो उससे बेहतर तरीक़े से उत्तर दो। और जब कोई तुम पर
एहसान (उपकार) करे तो उस को उस से बढ़ चढ़ कर जवाब दो किन्तु उस सूरत में भी श्रेय
पहल करने वाले को ही जाए गा।
63
सिफ़ारिश करने वाला उम्मीदवार के लिए परों की तरह होता है।
64
दुनिया वाले ऐसे सवारों की तरह हैं जो सो रहे हैं और सफ़र जारी है।
65
दोस्तों को खो देना एक तरह की ग़रीबी है।
66
मतलब का हाथ से निकल जाना इस बात से आसान है कि किसी नालायक़ के सामने हाथ
फैलाया जाए।
67
थोड़ा देने से शर्माओ नहीं क्यूँकि खाली हाथ वापिस कर देना उस से भी गिरी हुई
बात है।
68
पाकदामिनी ग़रीबी का ज़ेवर है और शुक्र दौलतमंदी की शोभा है।
69
अगर तुम्हारी मर्ज़ी के मुताबिक़ काम न बन सके तो फिर जिस हाल में हो उसमें मगन
रहो।
70
जाहिल को न देखो गे मगर यह कि या तो वह हद से बढ़ा हुआ है या उस से बहुत पीछे।
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