Tuesday 12 June 2012


हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (71 – 84)


71
जब अक़्ल बढ़ती है तो बातें कम हो जाती हैं।

72
ज़माना जिस्मों को पुराना व कमज़ोर और आकाक्षाओं को तरो ताज़ा कर देता है। मौत को क़रीब लाता है और आशाओं को दूर करता है। जो ज़माने से कुछ पा लेता है वह भी दुख सहता है और जो कुछ खो देता है वह तो दुख झेलता ही है।

73
जो ख़ुद को लोगों का पेशवा बनाता है उसे दूसरों को शिक्षा देने से पहले अपने आप को शिक्षा देनी चाहिए और इस से पहले कि वह ज़बान से दूसरों को सदव्यवहार की शिक्षा दे उस को अपना आचरण सुधारना चाहिए।

74
इंसान की हर सांस एक क़दम है जो उस को मौत की तरफ़ बढ़ाए लिए चला जा रहा है।

75
जो चीज़ गिनती में आ जाती है समाप्त हो जाती है और जिसे आना होता है वह आ कर रहता है।

76
जब किसी काम में अच्छे बुरे की पहचान न रहे तो उस के आरम्भ को देख कर परिणाम को पहचान लेना चाहिए।

77
जब ज़रार बिन ज़मराए ज़बाई मुआविया के पास गए और मुआविया ने अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबीतालिब (अ.स.) के बारे में उन से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि मैं इस बात की गवाही देता हूँ कि मैंने कई बार उन (अ.स.) को देखा कि जब रात अपने अंधकार का दामन फैला चुकी थी तो वह अपने इबादत के हुजरे में अपनी दाढ़ी को पकड़े उस इंसान की तरह तड़प रहे थे जिस को साँप ने डस लिया हो और दुखी हो कर रो रहे थे किः

ऐ दुनिया, तू मुझ से दूर हो जा, क्या तू मेरे सामने बन सँवर कर आई है या मेरी चाहने वाली और मुझ पर जान देने वाली बन कर आई है। तेरा वह वक़्त न आए कि तू मुझ को धोका दे सके। भला यह क्यूँ कर हो सकता है। जा किसी और को धोका दे। मुझे तेरी चाहत नहीं है। मैं तो तुझ को तीन बार तलाक़ दे चुका हूँ कि जिस के बाद दोबारा मिलन नहीं हो सकता। तेरी ज़िन्दगी बहुत छोटी है। तेरी अहमियत बहुत कम है और तेरी आरज़ू रखना बहुत घटिया बात है। अफ़सोस रास्ते का सामान बहुत थोड़ा और रास्ता बहुत लम्बा है और मंजिल बहुत कठिन है।

78
एक व्यक्ति ने हज़रत अली (अ.स.) से सवाल किया कि क्या हमारा शाम देश वालों से लड़ने जाना अल्लाह की मर्ज़ी के अनुसार था। आप (अ.स.) ने उस के जवाब में एक विस्तृत खुतबा दिया जिस के मुख्य अंश इस प्रकार हैं। 

खुदा तुम पर रहम करे, शायद तुम ने अल्लाह की मर्ज़ी को अच्छी तरह से समझ लिया है जिस को अंजाम देने के लिए हम मजबूर हैं। यदि ऐसा होता तो फिर न सवाब का कोई सवाल पैदा होता न दण्ड का। न वादे का कोई मतलब होता न धमकी का। पाक परवरदिगार ने अपने बन्दों को स्वतन्त्र बना कर नियुक्त किया है और दण्ड से डराते हुए बरे काम से रोका है। उन को सरल व आसान तकलीफ़ दी है और कठिनाइयों से बचाए रखा है। वह थोड़े किए पर अधिक पुण्य देता है। उस की नाफ़रमानी इस वजह से नहीं होती कि वह दब गया है और न उस की आज्ञा का पालन इस लिए किया जाता है कि उस ने मजबूर कर रखा है। उस ने अपने पैग़म्बरों (दूतों) को खेल तमाशे के लिए नहीं भेजा और अपने बन्दों पर अपनी किताबें बिला वजह नहीं उतारीं। और आसमान और ज़मीन और जो कुछ उन के बीच है को बिला वजह पैदा नहीं किया है। यह तो उन लोगों की सोच है कि जिन्होंने कुफ़्र इख़्तियार किया। तो अफ़सोस है उन पर जिन्होंने कुफ़्र इख़्तियार किया नरक की आग के दण्ड की वजह से।

79
ज्ञान की बात जहाँ कहीं भी हो उस को हासिल कर लो क्यूँकि ज्ञान की बात मुनाफ़िक़ के सीने में तड़पती रहती है जब तक कि उस के सीने से निकल कर मोमिन के सीने में पहुँच कर ज्ञान की दूसरी बातों के साथ मिल नहीं जाती।

80
ज्ञान की बात मोमिन की खोई हुई चीज़ है। ज्ञान की बात हासिल करो चाहे मुनाफ़िक़ से ही क्यूँ न हासिल करनी पड़े।

81
हर व्यक्ति की क़ीमत वह हुनर है जो उस के अन्दर है।
सैय्यद रज़ी फ़रमाते हैं कि यह एक ऐसा अनमोल वाक्य है जिस की कोई क़ीमत नहीं है।

82
तुम्हें ऐसी पांच बातों की हिदायत दी जाती है कि अगर उन को हासिल करने के लिए यात्रा की कठिनाइयाँ उठाई जाएँ तो भी ठीक है। तुम मे से कोई व्यक्ति अल्लाह के सिवा किसी से आस न लगाए, पाप के अलावा किसी और चीज़ से न डरे, अगर किसी से कोई बात मालूम की जाए और वह उस को न जानता हो तो यह कहने में न शरमाए कि नहीं जानता, और अगर कोई व्यक्ति कोई बात न जानता हो तो उस को सीखने में न शर्माए। और धैर्य (सब्र) रखे क्यूँकि धैर्य ईमान के लिए वैसा ही है जैसे बदन के लिए सर और अगर सर न हो तो बदन बेकार है। इसी प्रकार यदि ईमान के साथ धैर्य न हो तो ईमान में कोई ख़ूबी नहीं है। जिस के पास धैर्य नहीं है उस के पास ईमान नहीं है।

83
एक व्यक्ति ने आप (अ.स.) की बहुत प्रशंसा की जब कि वह दिल से आप (अ.स.) के प्रति श्रद्धा नहीं रखता था। आप (अ.स.) ने उस की प्रशंसा के जवाब में फ़रमायाः जो तुम्हारी ज़बान पर है मैं उस से कम हूँ, किन्तु जो तुम्हारे दिल के अन्दर है मैं उस से अधिक हूँ।

84
तलवार से बचे हुए लोग ज़्यादा बाक़ी रहते हैं और उन की नस्ल ज़्यादा होती है।





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