हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (85 - 100)
85
जिस की ज़बान पर यह जुमला कभी नहीं आया कि “नहीं जानता” वो चोट खाने वाली
जगहों पर चोट खाए बिना नहीं रह सकता।
86
वृद्घ व्यक्ति का परामर्श मुझ को जवान की हिम्मत से अधिक पसंद है। (एक रिवायत
में आया है कि आप(अ.स.) ने फ़रमाया कि वृद्घ व्यक्ति का परामर्श मुझे जवान के
ख़तरे में डटे रहने से ज़्यादा पसंद है।
87
उस व्यक्ति पर आश्चर्य होता है जो तौबा की गुंजाइश होते हुए भी
निराश हो जाए।
88
हज़रत अबू जाफ़र मौहम्मद इबने अली अलबाक़र अलैहिस्सलाम ने रिवायत की है कि हज़रत अली
(अ.स.) ने फ़रमायाः दुनिया में अल्लाह की ओर से आने वाले प्रकोप से बचाने वाली सुरक्षा की दो चीज़ें
थीं जिन में से एक तो उठा ली गई मगर दूसरी तुम्हारे पास अब भी मौजूद है अतः उस को
मज़बूती से पकड़े रहो। जो चीज़ उठा ली गई वह हज़रत मौहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहो
अलैहे व आलेही व सल्लम) थे और वो सुरक्षा जो बाक़ी है वो तौबा व असतग़फ़ार है।
जैसे अल्लाह सुबहानहु ने फ़रमाया हैः “अल्लाह उन लोगों पर अज़ाब नहीं करेगा जब तक कि तुम उन में मौजूद हो।” और “अल्लाह उन लोगों पर अज़ाब नहीं
उतारे गा जब कि यह लोग तौबा व असतग़फ़ार कर रहे होंगे।”
सैय्यद रज़ी कहते हैं कि यह बेहतरीन बात और उमदा नुकता है।
89
जिस ने अपने और अल्लाह के बीच मामलात को ठीक रखा तो अल्लाह उसके और लोगों के
बीच के मामलात सुलझाए रखेगा। और जिस ने अपना परलोक संवार लिया तो अल्लाह उस की दुनिया
भी संवार देगा। और जो ख़ुद को उपदेश देता रहे तो अल्लाह की तरफ़ से उस की सुरक्षा
होती रहेगी।
90
सब से बड़ा विद्वान व ज्ञानी वह है कि जो लोगों को अल्लाह की रहमत से निराश न कर दे
और उस की कृपा से मायूस न कर दे और उन को अल्लाह की ओर से दिये जाने वाले दण्ड से बिल्कुल
निश्चिंत न कर दे।
91
जिस तरह बदन थक जाते हैं, उसी तरह दिल भी उकता जाते हैं। अतः दिलों के लिए
ज्ञान की चुनी हुई बातें तलाश करो।
92
वह ज्ञान बिल्कुल बेकार है जो केवल ज़बान तक रह जाए और वह ज्ञान बहुत उत्तम है
जो इंसान के अंग अंग से प्रकट हो।
93
ख़बरदार, तुम में से कोई यह न कहे कि, “ऐ अल्लाह मैं तुझ से फ़ितने व परीक्षा के मुक़ाबले में पनाह चाहता हूँ। इस लिए
कि कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो फ़ितने की लपेट में न हो। अतः जो कोई पनाह माँगे
वह भ्रमित करने वाले फ़ितनों से पनाह माँगे। क्यूँकि अल्लाह सुबहानहू का कहना है
कि “इस बात को जाने रहो कि
तुम्हारा माल और तुम्हारी औलाद फ़ितना है”। इस का अर्थ यह है कि अल्लाह लोगों की माल और औलाद के द्वारा परीक्षा लेता है
ताकि यह स्पष्ट हो जाए कि कौन अपनी रोज़ी से असंतुष्ट है और कौन अपने भाग्य के
बारे में अल्लाह के लिए कृतज्ञ है। यद्यपि अल्लाह सुबहानहू उन लोगों के बारे में
इतना जानता है कि वह ख़ुद भी अपने बारे में उतना नहीं जानते। किन्तु यह परीक्षा इस
लिए है कि वो सारे कर्म सामने आ जाएँ जिन से पुण्य का हक़ पैदा होता है क्यूँकि
कुछ लोग लड़का चाहते हैं और लड़कियाँ होने पर क्षुब्ध हो जाते हैं और कुछ अपना माल
बढ़ाना चाहते हैं और उस की कमी को बुरा समझते हैं।”
सैय्यद रज़ी फ़रमाते हैं कि यह आप का एक आश्चर्यजनक ख़ुतबा है।
94
हज़रत अली (अ.स.) से सवाल किया गया कि नेकी क्या है? आप ने फ़रमाया कि नेकी
यह नहीं है कि तुम्हारा माल और तुम्हारी औलाद अधिक हो बल्कि अच्छी बात यह है कि
तुम्हारा ज्ञान अधिक और बुरदुबारी बड़ी हो और तुम अपने परवरदिगार की इबादत पर नाज़
कर सको। अतः अगर कोई अच्छा काम करे तो अपने परवरदिगार का धन्यवाद करे और कोई बुरा
काम करे तो तौबा व असतग़फार करे। और दुनिया में केवल दो लोगों के लिए भलाई है। एक
वो जो गुनाह करे तो तौबा कर के उस की तलाफ़ी कर ले और एक वे जो भले काम करने में
जल्दी करे।
95
जो कर्म तक़वे (पवित्रता) के साथ अंजाम दिया जाए उस को थोड़ा नहीं समझा जा
सकता क्यूँकि स्वीकार किए जाने वाला कर्म किस प्रकार थोड़ा हो सकता है।
96
लोगों में नबियों के सब से अधिक निकट वो लोग होते हैं जो उन की शिक्षाओं का सब से अधिक ज्ञान रखते हों। यह कह कर आप (अ.स.) ने क़ुरान शरीफ़ की एक आयत पढ़ी, "इब्राहीम के अधिक निकट वो लोग हैं जो उन का अनुसरण करें और उन पर ईमान लाएँ और अब यह विशेषता इस नबी और इस पर ईमान लाने वालों की है।" फिर आप (अ.स.) ने फ़रमाया कि पैग़म्बर (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) का दोस्त वही है जो उन (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) के आदेश का पालन करे चाहे रिश्ते की दृष्टि से वो उन से दूर ही क्यूँ न हो। और आप (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) का शत्रु वो है जो आप के आदेश का उल्लंधन करे चाहे रिश्ते के लिहाज़ से वो आप (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) के कितना ही निकट क्यूँ न हो।
96
लोगों में नबियों के सब से अधिक निकट वो लोग होते हैं जो उन की शिक्षाओं का सब से अधिक ज्ञान रखते हों। यह कह कर आप (अ.स.) ने क़ुरान शरीफ़ की एक आयत पढ़ी, "इब्राहीम के अधिक निकट वो लोग हैं जो उन का अनुसरण करें और उन पर ईमान लाएँ और अब यह विशेषता इस नबी और इस पर ईमान लाने वालों की है।" फिर आप (अ.स.) ने फ़रमाया कि पैग़म्बर (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) का दोस्त वही है जो उन (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) के आदेश का पालन करे चाहे रिश्ते की दृष्टि से वो उन से दूर ही क्यूँ न हो। और आप (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) का शत्रु वो है जो आप के आदेश का उल्लंधन करे चाहे रिश्ते के लिहाज़ से वो आप (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) के कितना ही निकट क्यूँ न हो।
97
एक ख़ारजी के बारे में आप (अ.स.) ने सुना कि वह नमाज़े शब पढ़ता है और क़ुरान की
तिलावत करता है तो आप ने फ़रमाया कि विश्वास की हालत में सोना शक की हालत में
नमाज़ पढ़ने से अच्छा है।
98
जब कोई हदीस सुनो तो उस को अक़्ल की कसौटी पर परखो, केवल शब्द नक़्ल करने पर
बस न करो क्यूँकि ज्ञान को नक़ल करने वाले तो बहुत हैं किन्तु उस पर सोच विचार
करने वाले बहुत कम।
99
आप (अ.स.) ने एक व्यक्ति को ‘इन्नालिल्लाहे व इन्नाइलैहे राजेऊन’ (हम अल्लाह के हैं और हमें अल्लाह की तरफ़ पलटना है) कहते हुए सुना। तो आप ने
फ़रमायाः हमारा यह कहना कि हम अल्लाह के हैं, उस की सम्पत्ति होने का इक़रार है
और यह कहना कि हमें उसी की तरफ़ पलटना है अपनी फ़ना (विनाश) का इक़रार है।
100
कुछ लोगों ने हज़रत अली (अ.स.) की उन के सामने प्रशंसा की तो आपने फ़रमाया, “ऐ अल्लाह तू मुझे मुझ से बेहतर जानता है
और मैं ख़ुद को इन लोगों से बेहतर पहचानता हूँ। ऐ अल्लाह मुझे उस से बेहतर क़रार
दे जो इन लोगों का ख़्याल है और मेरी उन बातों को बख़्श दे जिन का इन को ज्ञान
नहीं है।”
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